Sanskrit Shlok With Hindi Meaning !! संस्कृत श्लोक !! Sanskrit Shlok !! sanskrit shlok with meaning !!
सभी जानते हैं कि प्राचीन काल में संस्कृत भारत की आम भाषा थी। वर्तमान समय में संस्कृत का महत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। संस्कृत भाषा में कई महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं जो लिखित पाठों से भरी पड़ी हैं। उन महत्वपूर्ण ग्रंथों के सभी महत्वपूर्ण श्लोक उनके हिंदी अर्थ के साथ यहां संग्रहीत हैं।
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
उद्यम: साहसं धैर्यं बुद्धी: शक्ती: पराक्रम:|
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देव: सहाय्यकृत् ||
१) कार्य करने की क्षमता २) कार्य करने का साहस
३) कार्य सफल होने मे अगर समय लगता है तो उसमे स्थिर रहने के लिए धैर्य ४) कार्य करने के लिए लगने वाला स्किल
५) शक्ती याने कि ताकत और ६) पराक्रम ये छे गुण जिसके पास हैं| भगवान उसके ही कार्य मे मदत करते है| उसे ही सफल बनाते है | ये महत्वपूर्ण बात इस संस्कृत श्लोक मे बताई हैं|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
श्व:कार्यमद्य कुर्वीत पुर्वाह्णे चापराह्णिकम्|
न हि प्रतीक्षते मृत्यू: कृतमस्य न वा कृत्य ||
समय किसीके लिये रुकता नहीं|ये बात इस संस्कृत श्लोक मे बताये गये हैं| समय रुकता नहीं इसीलिए आदमीने कल करने का काम आजही करना चाहिए| और दोपहर के बाद करने का काम दोपहर होने से पहिले करना चाहिए| क्योंकि मौत किसी का इंतजार नही करती|मौत कभी भी ये नही देखती के उसका काम पुरा हुआ है क्या नही| इसके बारे मे सन्त कबीर कहते है|कल करे सो आज कर आज करे सो अब क्षणमे प्रलय हो जायेगा फिर करेगा कब|विद्यार्थी दशा के लिये बहुत हि महत्त्व पूर्ण बात इस संस्कृत श्लोक मे बताई गई है|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
न गणस्याग्रतो गच्छेत् सिद्धे कार्ये सम फलम् |
यदि कार्यविपत्ति: स्यात् मुखरस्तत्र हन्यते||
गण याने की जनसमुदाय |जनसमुदाय का नेता याने कि मुखिया कभी भी नहीं बनना चाहिए|क्योंकि अगर कार्य मे जीत मिल जाती है | तो सब लोग जित में बराबर हकदार होते है| अगर किस कार्य मे हार हो जाती है उसका जिम्मेदार अकेला मुखिया को बनाते हैं |याने की सुख मे सब साथी हो जाते है और दुःख में आदमी अकेला होता है|ऐसी महत्वपूर्ण बात इस संस्कृत श्लोक मे बतायी गयी हैं|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
चिन्तनिया ही विपदामादावेव प्रतिक्रिया |
न कुपखननं युक्तं प्रदीप्ते ते वह्नना गृहे ||
आपत्ती आने से पहिले उसको मिटाने के उपाययोजना करनी चाहिए| घर मे आग लगने के बाद बावडी खोदणा शुरू करने का कोई मतलब नही रहता|हे महत्वपूर्ण बात संस्कृत श्लोक मे बतायी गयी हैं|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
वनानि दहतो वह्ने: सखा भवति मारुत: |
स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदम् ||
जब बन मे आग लग जाती है तो उस आग को भडकाने का और आग फैलाने का काम हवा कर देते हैं|याने की हवा आग बडाने मे मदत कर देती हैं| वही हवा दीप को बुझाने का काम करती है|इसका मतलब जब आदमी बडा ताकतवर होता हैं |उसे सब मदत करते हैं | और जब आदमी कमजोर होता हैं|उसे बुझाने का काम उसके आसपास लोग करते हैं|इसीलिए आदमी ने कभी भी कमजोर नही रहना चाहिए|ऐसी महत्वपूर्ण बात इस संस्कृत श्लोक मे बताई गई हैं|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
निर्वाणदीपे किमु तैलदानम्
चौरे गते वा किमु सावधनम् |
वयोगते का खलु मल्लविद्या
पयोगते क: खलु सेतुबन्ध:||
दिया बुझ जाने पर तैल पात्र में तैल डालने का कोई मतलब नही रहता| दिया बुजने से पहले उसमे दिल डालना चाहिए |चोर चोरी करके जाने के बाद सावधान होने का कोई मतलब नही रहता| चोरणे चोरी करने से पहिले सावधान होना चाहिए|बुढापे मे मल्लखांब खेलने का कोई मतलब नही रहता|जब तक शरीर में बल है तबही कसरत करना चाहिए| और जल की बाड जाने के बाद सेतुबंध बांधने का कोई मतलब नही रहता|बारिश आने से पहिले है सेतुबंधन पूर्ण होना चाहिये| इसका मतलब जीवन मे हर एक काम वक्त से पहले करना चाहिए|ऐसी सुंदर बात संस्कृत श्लोक मे बतायी गयी है |
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
सत्यं पर: सदाचार: सत्यं धर्मस्य जीवनम्|
सत्यं देवस्य रुपं च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ||
जीवन मे सत्य बोले इस से बडा सदाचार नही है| क्योंकी सत्य ही धर्म का जीवन है|सत्य परमात्मा का रूप है|समाज मे सत्य बोलने वाले की ही प्रतिष्ठा रहती है| इसीलिए सभी सत्य बोले| जीवन मे हमेशा सत्य के मार्ग पर चले|झूटे लोगो का कभी साथ ना दे| ऐशी महत्वपूर्ण बाद इस संस्कृत श्लोक मे बताई गई है|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
कोलाहले काककूलस्य जाते
विराजते कोकील कुंजीतं किम्|
परस्परं संवदतां खलानाम्
मौनं वरं तत्र ही सज्जनानाम्||
जब कौवे का कोलाहल चालू रहता है| मतलब कौवे एक जगह मिलकर काव काव करते है|तब कोकिलाने गाना नही गाना चाहिए|क्युंकी कौवे के काव काव मे उनकी आवाज नही आती|बिलकुल वैशैही जब दुर्जन आदमी घोंगाट करते है|तब सज्जन आदमीने चुप बैठणा ही अच्छा लगता है|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक.
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे|
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विक स्मृतम्||२०||
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १७/२०
सरला अर्थ:-दान देना यह आपणा उचित कर्तव्य हैं यह समज कर दान देना, उसके बदले मे कोई अपेक्षा न रखना, लेने वाले का देश, काल और पात्रता देखकर दान देना, इसे सात्विक दान कहते है|
यह संस्कृत श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के सतरावे अध्यय का बिसवा श्लोक है|भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माध्यम बनाकर पुरे विश्व को जीवन में कैसा जीवन व्यतीत करे ये अनमोल संदेश अपने श्रीमद् भगवद्गीता ग्रंथ में बताये गया है|इस श्लोक में दान का महत्व बताया गया हैं|सभी धर्म में दान जाता हैं|दान एक पुण्य का काम हैं | ‘
दानमेकं कलौ युगे’ धर्म के चार चरण हैं|सत्य, दया, तप और दान कलिजुग में दान से ही पुण्य मिलता हैं|दान का मतलब देना होता हैं|दान जिसे जरुरत है उसे देना चाहिए| दान दिया देने वाले का ऊस वस्तू पर का अधिकार समाप्त होता हैं|और दान लेने वाले को अधिकार मिलता हैं|दानके बहुत प्रकार हैं| जमीन दान करना-भूदान, गाय दान करना-गोदान , सोना दान करना -सुवर्णदान, नेत्रदान करना-नेत्रदान, खुनदान, कन्यादान, अन्नदान, विद्यादान,— |दान देणे वाले के पास ये तीन चीज होणा बहुत जरुरी हैं |
पहिले दान देने कि चीज\वस्तु उसके पास होनी चाहिए| देने वाले पास वो चीज/ वस्तू देने की कॅपॅसिटी होनी चाहिये| और दान देने की उसकी इच्छा चाहिए |लेने वाले को ऊस चीज\वस्तु जरूरत चाहिए | जिस देश मे अकाल पडा है अन्नधान्य की कमतरता हैं उस देश मे अन्नदान ही करना चाहिए |जिसे दवाई चाहिए उसे दवाई देना |
जो प्यासा है उसे पाणी पिलाना चाहिये |संत कबीर जी कहते है’ देने को अन्नदान, लेने को हरिनाम, तरणे को लीनता और डूबने को अभिमान’ संत तुकाराम महाराज अपने अभंग वाणी मराठी मे कहते है|
‘भूतदया गायी पशुचे पालन तान्हेल्या जीवन वना माजी’इसका मतलब जिसको जिस चीज की जरूरत है उसे ऊस चीज देना ये सबसे बडा दान हैं|और इसे सात्विक दान कहते है| यह बात भगवान श्रीकृष्ण ने अपने इस श्लोक मे बतायी है|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक.
वृथा वृष्टी: समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम्|
वृथा दानं समर्थस्य वृथा दिपो दिने यथा||
दान देते समय किस को दान नही देना चाहिए ये बात संस्कृत श्लोक मे बतायी हैं| वृथा का मतलब व्यर्थ है|समुद्र में जल बहुत है| एसै जलाशय मे बारिश गिरी वो व्यर्थ है|क्योंकी समुद्र को बारिश की जरूरत नही|जिसने पहिले ही भरपेट खाया है उसे और भोजन खिलाना व्यर्थ हैं|
वो विष के बराबर हैं|समाज मे यह चित्र देखने को मिलता है जब शादी आधी कार्यक्रम मे जिसे भूक नही है उसे जबरदस्ती खिलाते है और बाहर गरीब लोक भुके रहते है|जिसे भूक है उसे खिलाने मे पुण्य मिलता है|बिलकुल वैसही जिसके पास पहिले है बहुत धन है उसको और धन देना व्यर्थ है||सूर्य के पास रोशनी की कमी नही है|इसलिये उसके सामने दिया जलाना व्यर्थ है| दान देते समय जरूरतमंद को ही दान दे ये बात इस संस्कृत श्लोक मे बताई गई है|