bhagwat gita shlok hindi !! संस्कृत श्लोक !! Sanskrit Shlok !! भगवत गीता श्लोक हिंदी !!
सभी जानते हैं कि प्राचीन काल में संस्कृत भारत की आम भाषा थी। वर्तमान समय में संस्कृत का महत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। संस्कृत भाषा में कई महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं जो लिखित पाठों से भरी पड़ी हैं। उन महत्वपूर्ण ग्रंथों के सभी महत्वपूर्ण भगवत गीता श्लोक हिंदी अर्थ के साथ यहां संग्रहीत हैं।
Table of Contents
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 1
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||७||
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ४/७
श्रीमद् भगवद्गीता का ये श्लोक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं|
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवदगीता सुनाई|जीवन मे विफल मे सफल कैसे हो ये भगवद्गीता बताती है | इस श्लोक मे भगवान श्रीकृष्ण अपने अवतार लेने का प्रयोजन इस श्लोक में बताते हैं| वे कहते हैं जब जब इस धरती पर धर्म को ग्लानी याने की हानी होती हैं| और अधर्म की वृद्धी हो जाती हैं |
तब तब मै इस धरती पर साकार रूप मे प्रगट हो जाता हू |श्रीमद्भगवद्गीता की यही बात गोस्वामी तुलसीदास जी अपने रामचरितमानस मे भगवान राम के बारेमे कहते है|वे कहते है’ जब जब होई धर्म की हानी बाढही असुर ,अधर्म, अभिमानी तब तब धरी प्रभू बिबिध शरीरा|’जब इस धरती पर असुर बड जाते है, अधर्म लोक बड जाते है और अभिमान मे लोगो की संख्या बढती हैं तो प्रभू अपना अवतार लेते है|
प्रश्न यह उठता है कि धर्म किसे कहते हैं |जगत मे बहुत सारे धर्म है|इसमे कोनसे धर्म के बात श्रीकृष्ण ने कही हैं|भगवान श्रीकृष्णाने किसी भी धर्म का नाम नही लिया हैं| धर्म की व्याख्या करते समय संत ज्ञानेश्वर जी बताते हैं| धर्मात्मा ने जो अच्छा काम किया हैं उसका पालन करना ,ये हर एक का धर्म हैं|
साने गुरुजी बताते है जगत को प्यार अर्पण करना है धर्म हैं |भगवान श्रीकृष्णाने भगवद्गीता मे हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई ऐसे कोणसे हि धर्म का नाम नही लिया |भगवान श्रीकृष्ण यहा मानवता धर्म की बात करते हैं| जैसे समुद्र को मिलकर सभी नदिया एक हो जाती हैं|वैसे सभी धर्म मानवता धर्म के अंदर समा जाते है|
जो मानवता के खिलाफ वर्तन करते हैं| वो सब भगवान श्रीकृष्ण के दुश्मन हैं|और ऐसे मानवता के खिलाफ काम करने वाले के जब संख्या बढ जाती हैं| ऐसें अधर्मी लोंगोको ठिकाणी लगाने के लिए भगवान अवतार लेते हैं|
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 2
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्|
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||८||
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ४/८
भगवद्गीता ग्रंथ संस्कृतीका प्राण हैं| श्रीमद् भगवद्गीता के इस श्लोक मे भगवान श्रीकृष्ण अपना अवतार लेने का मुख्य प्रयोजन बताते हैं| धर्म की रक्षा करना यहि भगवान का अवतर लेने का मुख्य प्रयोजन हैं |लेकिन धर्म कोई मूर्त साधन या वस्तु के रुप में नहीं|फिर सवाल होता हैं की धर्म की रक्षा कैसें की जाय |धर्म मानव के आश्रय मे रहता हैं
|धर्मो रक्षती रक्षिता:|इसका मतलब धर्माचरण करने वाले की रक्षा करना यही धर्म की रक्षा हैं|जो धर्म की रक्षा करते है उसे साधू , संत ,सज्जन आधी कहते हैं|उसकी रक्षा करना भगवान का आद्य कर्तव्य हैं|
समाज मे एक अन्याय करणे वाले लोग होते हैं|दुसरे अन्याय सह लेने वाले लोग होते हैं|जब अन्याय करने वाले की संख्या बढ जाती हैं|अन्यायकारी लोगो को खत्म करने के लिए और साधु सज्जन लोगो की रक्षा करने के लिए मैं हर एक युग मेअवतार लेता हूं |और धर्म का संवर्धन करता हूं |यह बात भगवान श्रीकृष्ण ने इस भगवद्गीता के श्लोग मे बताई हैं|
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 3
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयछति|
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतान्त्मन: ||२६||
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ९/२६
भगवद्गीता के इस श्लोक मे भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात बताई है|इसिलिए जीवन मे परिवर्तन लाने के लिए भगवद्गीता का यह श्लोक महत्वपूर्ण हैं|लोगो के मन मे परमात्मा प्राप्ति की इच्छा हैं|उनके मन मे सवाल जरूर रहता है कि परमात्मा की प्राप्ति कैसे की जाय|परमात्मा की प्राप्ती कैसी होती हैं|यह बात भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद् भगवद्गीता के इस लोक मे बताते हैं|
जो भक्त जो भक्त मुझे प्यार से पेड का पत्ता/पत्ते ,फुल या फल प्रेम भावसे मुझे अर्पण करता हैं| तो मैं उस वस्तू को प्रेम भाव से स्वीकार करता हूं| मैं प्यार का भुकेला हूं |मुझे प्यार ही चाहिये| मुझे पाने के लिए वस्तू मायने नहीं रखती|वस्तू किस भावना से दियी यह मै जानता हूं|
भगवान शिव जी को बेल की पत्ते चढा कर प्रसन्न कर सकते हो| द्रौपदीने भगवान श्रीकृष्णको सब्जी का एक पत्ता दिया और प्रसन्न कर लिया|गजराज गजेंद्रने एक फुल भगवान को अर्पण करके पा लिया| और माता शबरीने बेर देकर भगवान श्रीराम को पा लिया |ऐसे बहुत सारे उदाहरण ग्रंथ मे मिलते हैं|
भगवद्गीता का इस श्लोक अपने जीवन मे उतारो|भगवान को जो देना है प्यार से दो |भगवान को किमती वस्तू नही चाहिये| दीयी गयी वस्तू प्यार से देना चाहिए|
Sanskrit Shlok With Hindi Meaning – हिंदी अर्थासह संस्कृत श्लोक
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 4
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु|
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:||३४||
श्रीमद्भगवद्गीता ९/३४
नर का नारायण याने की भगवान कैसा बनता है यह बात श्रीमद्भगवद्गीता के इस लोक मे भगवान श्रीकृष्णाने अर्जुन को बतायी|इसीलिए भगवद्गीता का हे श्लोक बहुत ही महत्वपूर्ण है|भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को भगवद्गीता के इस श्लोक मे तीन बाते बताते है|पहिली बात हे अर्जुन तु मुझमे मन लगाओ |
दुसरी बात तुम मेरा पूजक बनो और तिसरी बात मुझे ही नमस्कार कर|ये तीन क्रिया करके तू खुद को मेरा पारायण बनाओ| अगर तु यह तीन क्रिया कर सकता है| तो मुझे पा सकता है|अभी तो तुम नर हो|
लेकिन ये तीन क्रिया किया तो नारायण बन सकता है|अर्जुन की तरह अगर कोई आदमी ये तीन क्रिया करता है| वो भगवान को प्राप्त होता है|यही सीधी लेकीन महत्वपूर्ण बात भगवद्गीता मे श्रीकृष्णाने बतायी है|
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 5
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च|
निर्ममो निरहङ्कार: समदुःखसुख: क्षमी||१३|
भगवद्गीता १२/१३
भगवान को कोनसा भक्त अतिप्रिय हैं|यही बात भगवद्गीता के इस श्लोक मे श्रीकृष्णाने अर्जुन को बताई हैं|भगवान तो सबको प्रिया हैं|भगवान के प्रिय भक्त के लक्षण भगवद्गीता का यह श्लोक बताता हैं|
जो सब प्राणियों के साथ द्वेष भावना रहित रहता है, सब प्राणियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, जिसके मन मे दयाळू भाव है, जो ममतारहीत अहंकार रहित हो ,सुख- दुख मे सम रहता हो और हो जो क्षमाक्षील हो |वह भक्त मुझे प्रिय हैं|
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 6
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय:|
मय्यर्पितमनोबुध्दिर्योग मद्भक्त: स मे प्रिय:||१४||
भगवद्गीता १२/१४
प्रिय भक्त के अन्य लक्षण भगवान श्रीकृष्णाने भगवद्गीता के इस श्लोक मे बताये है|वे कहते है जो हर एक परिस्थिती मे सन्तुष्ट रहता हैं|जिस पर सुख का और दुःख का असर नही पडता|जो निरंतर योगी हो, जिसके जानेंद्रिय और कर्मेंद्रिय खुद के वश मे हो याने की वो यतात्मा हो, दृढनिश्चयी हो, जिसने अपना मन और बुद्धी मुझमे लगाई हो, ऐसा जो मेरा भक्त है वही मेरा प्रिय भक्त है|भगवद्गीता का भक्ती योग का श्लोक हैं|
भक्त के सात वह योगी भी होना चाहिये याने की उसका शरीर बलदंड होना चाहिए| यह महत्वपूर्ण बात भगवान श्रीकृष्णाने इस श्लोक मे बताई हैं|भक्त के अन्य लक्षण आगे के श्लोक मे बताये हैं|
bhagwat gita shlok hindi – भगवत गीता श्लोक हिंदी 7
एस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:|
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:||१५||
भगवद्गीता १२/१५
भगवद्गीता का यह श्लोक महत्वपूर्ण हैं|इसमे भगवान कहते हैं|जिस भक्त से कोणसाही प्राणी मात्र उद्विग्न (दु:खी/क्षुब्ध) नहीं होता , कोनसे ही प्राणी मात्र से जो भक्त उद्विग्न नही होता, जो हर्ष से, इर्षासे, राग से, द्वेषसे मुक्त रहता है|वही भक्त मेरा सच्चा भक्त हैं|सच्चे भक्त के लक्षण भगवद्गीता के इस श्लोक मे बताये हैं|